Sunday, January 22, 2012

वर्तमान समय और कविता-विवेक मिश्र

कविता लिखने का उसे जांचने, परखने और मापने का कोई यान्त्रिक तरीका कोई कवि या आलोचक आज तक ईज़ाद नहीं कर पाया। जो एक के लिए सही है,वही दूसरे के लिए सर्वथा ग़लत। मानवीय संवेदनाएं,समस्याएं और परिस्थितियां बहुत ज्यादा नहीं बदलती, या यूँ कहें कि वे रचना प्रक्रिया में उतनी महत्वपूर्ण साबित नहीं होती। महत्वपूर्ण होता है चीज़ो देखने का नज़रिया और उसे कहने का तरीका। …और यह तरीका सबका अपना है और आपके भीतर से आता है।
ऐसी चिन्ताओं से भरे कई लेख मिल जाएंगे कि आज के समय में कविता के लिए कोई स्थान नहीं है, पर मैं ऐसी चिन्ताओं को बहुत बड़ी और गम्भीर चिन्ता नहीं मानता बल्कि मुझे लगता है कि दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं है,कोई ऐसा कोना नहीं है, जहाँ कविता के होने की संभावना ना हो, कविता की जगह ना हो। यदि हमें कविता के लिए जगह की कमी मह्सूस होती है,तो वह उन कारणों से है, जिन्होंने कविता को ले जाकर किसी निर्जन टापू पर बिठा दिया है, उसे स्पेशियलाइज़ कर दिया है(विशेषीकृत) कर दिया है।
कविता के इस विराट फ़लक को मापने के लिए किसी सूत्र या प्रतिमान की आवश्यकता है , ऐसा नहीं लगता। इन सूत्रों प्रतिमानों से परे कविता की अननतता,उसका विस्तार कविता के अपने गुण हैं, जो कविता के अलावा किसी विधा में और साहित्य के अलावा किसी विषय में नहीं हो सकते।
सत्रहवीं सदी के एक महान खगोलशास्त्री जोहान्स कैपलर ने कहा था कि हम यह नहीं पूछते कि भला चिड़िया किस मक़्सद से चहकती है क्योंकि हम जानते हैं कि चहकने में उनका आन्नद है और वह चहकने के लिए ही अस्तित्व मैं आई हैं। …शायद कविता और किसी भी समय में कवि का होना भी कुछ ऐसा ही है,जैसे चिड़ियों के होने,चहकने में उनका आनंद भी है और उसमें उनके जीवन के गूढ़ रहस्य भी छुपे हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि इस समय में चिड़ियों के होने और चहकने की तरह किसी कवि का होना और कविता लिखना भी पूरी तरह निर्रथक नहीं है, पर उसकी सार्थकता आप दो और दो चार की तरह सिद्ध नहीं कर सकते।
जीवन के जिन कठिन प्रश्नों को हम हल करना चाहते हैं , जिन बातों को हम सदियों से कहना चाहते हैं और कहीं भी वे बातें कही-सुनी नहीं जा रही हैं, उन्हें कहने-सुनने की बिलकुल सही जगह है कविता में। और जब आपको लगे कि आप कुछ भी नहीं कह पा रहे हैं,आपको तनिक भी आज़ादी नहीं है,…वही,ठीक वही समय है कविता को कहने काओ सकता है भविष्य में जब तमाम बातें निर्रथक लगने लगें तब एक कविता ही जीवन को एक बिलकुल नया अर्थ दे और काम आज के दौर की कविता बड़े अच्छे ढ़ंग से कर रही है। अरुण देव की एक कविता है- सच चाहे अप्रिय ही क्यों ना हो/कहते रहना अपने सबसे प्रिय से/यही एक रास्ता है दोनो को बचाने का…संग्रह के ढेर और बाज़ार के शोर से हटकर/कभी वह संतोष भी पाना/जो छिपा रहता है संगीत,साहित्य और विचारों की कोख में/…यथार्थ की खुरदुरी सतह पर/ भविष्य के स्वप्न की गजाइश भी रखना।

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