Sunday, November 9, 2008

अंक – 4

सही मायनों में गीत का प्राथमिक एवं प्रमाणिक स्वरूप कालिदास की चतुष्पदी में मिलता है। आगे काव्य की यह विधा क्षेमेन्द्र, जयदेव, मीरा एवं सूरदास आदी के द्वारा समृद्ध हुई। आधुनिक युग में भारतेन्दु ने न केवल गीत की परम्परा को पोषित ही किया अपितु उसे आगे भी बढ़ाया। इसके बाद छायावादी एवं उत्तर छायावादी कवियों ने इसे आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हाँलाकि इस समय गीत पर पाश्चात्य प्रभाव पड़ने लगा था। श्री हरिवंश राय बच्चन छायावादोत्तर व्यक्तिवादी गीत कविता के श्रेष्ठ कवि कहे जा सकते हैं। बच्चन ने स्वानुभूतिजन्म सुख-दुख और सौन्दर्य प्रेम के उन्मुक्त सहज गीत गाये हैं और उनके गीत सहज सुख-दुख से गुज़रते हुए, सामाजिक विसंगतियों का चित्रण करते हुए उन विसंगतियों के विरोध में खड़े दिखते हैं।

इसी क्रम में रामेश्वर शुक्ल अंचल तरूणाई के उन्माद से भरे प्रेम गीत लिखने वाले कवि हुए। प्रेम एंव विरह में नारी भावनाओं का चित्रण महादेवी वर्मा के गीतों में बहुत मर्मस्पर्शी ढंग से हुआ है।

गीतों में सामाजिक विषयों के समावेश के साथ उनके लिये बड़ी एंव पुख्ता ज़मीन तैयार करने में लोकप्रिय कवि भगवती चरण वर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

गीत के विकास एंव उसमें प्रगतिवाद के समावेश का श्रेय निराला को जाता है। निराला ने अपने गीतों में शब्द चित्रपूर्ण पदावली का प्रयोग किया। उन्होंने ही गीतों में पश्चिमी एंव भारतीय संगीत का सम्मिश्रण किया। निराला की ‘अर्चना’ एंव ‘अराधना’ के गीतों में संगीत पक्ष प्रबल होने पर भी, भाषा सहज-सरल है और शैली पारम्परिक गीतों से बदली हुई है।

वहीं पंत हिन्दी काव्य में प्रकृति के सजीव एंव मौलिक चित्रण के लिये जाने जाते हैं। वह प्रकृति के ऐसे रूपों का गीतों में समावेश करते हैं जो कविता में सहज ही उल्लास भर देता है।

प्रगतिवादी गीतकारों में शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ तथा केदारनाथ अग्रवाल प्रमुख रहे।
इसी समय त्रिलोचन जैसे कवियों ने अपने गीतों में ठेठ ग्रामीण अनुभूतियों को प्रधानता के साथ चित्रित किया। उनकी सरस एंव सरल शैली में लोकगीतों की परिचित गंध विद्यमान है।

उसी प्रकार राघेय राघव, शील तथा नागार्जुन जैसे प्रगतिवादी कवियों के काव्य में भी गीत के गुण विद्यमान हैं।

क्रमशः

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