Sunday, October 19, 2008

अंक - 3

डाः कुँवर बेचैन के गीतों के संकलन पर टिपण्णी करते हुए प्रसिद्ध गीतकार मधुर शास्त्री ने लिखा है कि पिछ्ले पचास-साठ वर्षों में गीत ने अनेक करवटें ली हैं और प्रत्येक करवट पर अपने तेवर बदले हैं। गीत ने आम आदमी की भावुकता को गाया, तो उसकी पीड़ा को भी उतनी ही गहनता के साथ रेखांकित किया।

गीत ने प्रगतिशील गीत, प्रयोगवादी गीत, नवगीत, प्रगीत, अनुगीत और न जाने कितने प्रकार से स्वयं को अभिव्यक्त किया।

मूलतः गीत प्रेम, श्रंगार, वियोग, करुणा, ममता के साथ-साथ लोक स्पर्श से जनगीत में बदला, जिसमें मज़दूर, किसान, शोषित तथा अन्याय से पीड़ित मनुष्य की व्यथा व्यक्त हुई।

गीत का प्रमुख गुण संगीत और अनुभूतियों की एकता है। गीत को काव्य की सबसे प्राचीन और मौलिक विधा कहा जा सकता है। भारत में गीतों की शुरुआत आदी देव शंकर से मानी गयी है। गीतों की प्रारम्भिक दशा वैदिक काल से पहले मानी जा चुकी है। ॠग्वेद में गीत का इतिवृत्तात्मक परिचय मिलता है। फिर बाद में साहित्यिक गीतों की रचना अधिकतर प्राकृत या लोक भाषा में हुई है।

भारतीय साहित्य में क्षेत्रिय एवं स्थानिय भाषाओं में अपभ्रन्श कवियों के द्वारा गीतों को एक नयी ऊंचाई मिली।

क्रमशः

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