Friday, October 17, 2008

अंक – 2

सहज और सीधे शब्दों में कहें तो मानव मन के किसी भी सुख या दुख की सधे हुए शब्दों में , सुर या लय के साथ, भावावेशमयी अभिव्यक्ति ही संगीत है।

गीत की विवेचना करते हुए महादेवी वर्मा ने कहा है कि गीत की रचना में कवि को संयम की परिधि में बँधे हुए जिस भावातिरेक की आवश्यकता होती है, वह सहज प्राप्य नहीं।

सच ही है, जो गीत सहज, सरल एवं कर्णप्रिय लगते हैं, कवि के लिये उनकी रचना करना उतना ही सरल एवं सहज होगा, ऐसा नहीं है। बल्कि भावातिरेक में लय को न छोड़ने की चुनौती हमेशा कवि के समक्ष बनी रहती है और आगे की कड़ियों में उसे उसी प्रवाह एवं प्रभाव के साथ ले जाना होता है, यही गीत की रचना की कला भी है, और इसलिये गीत की भाषा और शिल्प अलग हैं।

गीत की रचना करते हुए गीतकार अपने निजी अनुभव, विचार और भावानुभूतियों को उनके अनुरूप लयात्मकता से जोड़ने की कोशिश करता है। गीत में अत्यन्त जटिल मनःस्थितियों एवं परिस्थितियों को बहुत सहज ढ़ग से अभिव्यक्त कर देने कि विलक्षण क्षमता होती है।

क्रमशः

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