Wednesday, October 8, 2008

यह लेख - कवि, लेखक श्री विवेक मिश्रा की प्रस्तुति है।

लय और भाव है गीत

गीत एक परम्परा

भाव और लय से गीत की रचना होती है । मन की जल-तरंग की लहरियों पर डूबते-उतराते भाव पूर्ण शब्द ही सच्चे गीत की रचना करते हैं । गीत शब्द का प्रयोग बहुत पुराना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है, गाया हुआ।

गीत में भाव और लय के साथ क्रमिक शब्द-विधान होता है, जिसमें बिम्ब, रूपक, उपमाओं एवं अलंकारों के प्रयोग से यह अत्यन्त प्रभावोत्पादक, मर्मस्पर्शी एवं स्मरणिय बन जाता है।

गीतों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि किसी मानव सभ्यता और संस्कृति में किसी भाषा का प्रयोग।

गीत का प्रारम्भ सहज मानव मन में उपजे भाव और उसके परिवेश से प्रेरित प्रकृति प्रदत्त लय से हुआ होगा। किसी भी लोक संस्कृति में यदि काव्य की उपस्थिति दिखती है तो वह गीत के रूप में ही है। इसलिये किसी लोक गीत की भाषा न जानने पर भी उसके भाव और लय सुनने वाले को मन्त्रमुग्ध कर जाते हैं, उसका कारण भाव और लय से उपजी संगीतात्मकता है, और वह संगीतात्मकता एक मन से दूसरे मन में तैर जाती है।
मैं गीत की परिभाषा के विषय में अर्नेस्ट राईस से ज़्यादा सहमत हूं जिन्होंने कहा है कि सच्चा गीत वही है जिसके भाव या भावात्मक विचार का, भाषा में स्वाभाविक विस्फोट हो।

क्रमश:

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